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हिन्दी सी तुम ( Hindi si tum )

हिन्दी सी तुम निखरती पल पल तुम्हें निहारूँ । निर्गुण सगुण भी तुम हो रामायणी भी तुम हो । तुम उर्वशी हो मेरी कामायनी भी तुम हो ।। मीरा की पद सी कोमल रसखान की दुलारी । पद्मावती की सूरत नख शिख बड़ी ही प्यारी ।। मैं रत्नसेन जैसे सब राज - पाठ वारूँ । हिंदी सी तुम निखरती पल पल तुम्हें निहारूँ ।। नयनो की कौमुदी हो तुम मेरी चंद्रिका हो । वीणा मेरे हृदय की मेरी अनामिका हो ।। पल्लव अधर तुम्हारे लहरों सी मनचली हो अणिमा हो अर्चना हो तुम जूही की कली हो ।। बस इक दरस को तेरे वैभव समस्त हारूँ । हिन्दी सी तुम निखरती पल पल तुम्हें निहारूँ ।। अभिधा हो लक्षणा हो तुम काव्य की कला हो । कादम्बरी हो मेरी तुम ही शकुन्तला हो ।। जिसका प्रसाद गुण है वो रीति है तुम्हारी । अक्षय अनन्त मुझसे ये प्रीति है तुम्हारी ।। बाहों में मैं तुम्हारे ऋतुयें सभी गुजारूं । हिन्दी सी तुम निखरती पल पल तुम्हें निहारूँ ।। छन्दों की रागिनी में पट खोलती हो दिल का । वाणी है सारगर्भित तुम भी वसन्ततिलका  ।। हरिगीतिका की लय सी क्यूँ भ्रान्त कर रही हो ? तुम मंद मंद हिय को आक्रांत कर रही हो ।। मधुमय वचन तुम्हारे मैं काव्य में उतारू

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