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Showing posts from December, 2019

घर से दूर (एकांतवास)

मेरा सफ़र (2019 की आख़िरी कविता)

हाँ चातक को सुनहली धूप में भी आस दिखता है

मरीज-ए-इश्क़(ग़ज़ल)

अब आज कल इंसान में गैरत नहीं रही

सफलता

हैं लफ्ज़ लड़खड़ाते आंखों में रुबाई है

कैसे कह दूँ प्यार नहीं हैं

ग़ज़ल

अकेलापन

प्यार में अन्तर (सुनील योगी साहब से प्रेरित)

भोजपुरी साहित्य (हास्य)