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Showing posts from December, 2019
हाँ चातक को सुनहली धूप में भी आस दिखता है
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अब आज कल इंसान में गैरत नहीं रही
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हैं लफ्ज़ लड़खड़ाते आंखों में रुबाई है
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प्यार में अन्तर (सुनील योगी साहब से प्रेरित)
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