तितली हमसे पूछ रही है -
तितली हमसे पूछ रही है ,
तापमान में वृद्धि इतनी ? सूरज को किसने डाँटा है ।
भोर हुई चिड़ियों के स्वर थें, अब क्यूँ इतना सन्नाटा है ।।
धरती में इतनी क्यूँ हलचल ? यहाँ सुनामी आता क्यूँ है ।
जिह्वा अपनी लपका कर के, सागर हमें डराता क्यूँ है ।।
स्वार्थ में इतने अन्धे हो कि, सही गलत का भेद नही है ।
आंखें अपनी बंद किये हो, तुमको इसपर खेद नहीं है ।।
जिसने तुमको जीवन दी है, उसके हेतु पढ़ोगे मारण ?
क्या नदियों के उर पर होगा, कारखानों का मल निस्तारण ।।
अपने उत्तम विलासिता में, छायी बदली छाँट रहे हो ।
तुमने क्रेस्कोग्राफ बनाया , फिर भी वन को काट रहे हो ।।
इतने निर्दय हो तुम तो ये, शांति वार्ता करते क्यूँ हो ?
ये सीमायें वो सीमायें, हद में रहकर मरते क्यूँ हो ?
साइंस की बातें कर के, अपनी गलती ढाप रहे हो ।
एक एक इंच धरती को, सौ लाशों से माप रहे हो ?
आखिर इतनी विह्वलता क्यूँ, क्यूँ मंगल पर भाग रहे हो ?
खुद को जरा जिंझोड़ के देखो, सोते हो या जाग रहे हो ?
- माधवेन्द्र प्रताप सिंह "रोशन"
अति सुन्दर ❤️✨
ReplyDeleteNice line sir
ReplyDeleteबहुत खूब लिखे है श्रीमान
ReplyDeleteNice line sir 👍
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteएक-एक इंच धरती को,सौ लाशों से माप रहे हो...हृदय स्पर्शी रचना! पंक्ति-पंक्ति सार्थक है।
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